एफडीडीआई हिन्दी विभाग

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संक्षिप्त परिचय - राजभाषा (हिन्दी)

राज-काज की भाषा ही राजभाषा है। एक गणतंत्र देश में इसका तात्पर्य उस भाषा से है जिस भाषा में शासकीय कार्यों का निष्पादन किया जाता है। किसी भी राष्ट्र की अपनी स्थानीय राजभाषा उसके लिए राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान की प्रतीक होती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार ‘हिन्दी’ भारत संघ की राजभाषा है। हिन्दी पहले बोल-चाल की भाषा थी, फिर साहित्यिक भाषा बनी और स्वतंत्रता के पश्चात हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया।

राजभाषा जनता और सरकार के बीच एक सेतु का कार्य करती है। वैदिक काल में भारतवर्ष की राजभाषा संस्कृत थी। उसके पश्चात पाली, प्राकृत और अपभ्रंश भी भारत की राजभाषा के रूप मे प्रयोग की गयी। मुगल काल में अरबी और फारसी भारत की राजभाषा थी, तथा स्वतंत्रता पूर्व ब्रिटिश शासन काल में समस्त राजकाज अंग्रेजी में हुआ। 1947 में स्वतंत्रता के पश्चात महसूस किया गया कि स्वतंत्र भारत देश की अपनी भाषा होनी चाहिए, एक ऐसी भाषा जिससे प्रशासनिक तौर पर पूरा देश जुडा रह सके। भारतवर्ष के विचारों की अभिव्यक्ति करने वाली संपर्क भाषा हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वतंत्र भारत के संविधान में 14 सितम्बर, 1949 को संविधान सभा ने हिन्दी को राजभाषा के रूप मान्यता प्रदान की। 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हुआ और हिन्दी को राजभाषा के रूप में संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ।

अर्थात आधुनिक काल में हिन्दी भारत की राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक बन गयी है। हमारे संविधान को राजभाषा स्वीकार किए जाने के साथ हिन्दी का परंपरागत अर्थ, स्वरूप तथा व्यवहार क्षेत्र व्यापकतर हो गया हिन्दी के जिस रूप को राजभाषा स्वीकार किया गया है, वह वस्तुतः खडी बोली हिन्दी का परिनिष्ठित रूप है। सविधान में कहा गया है कि इसकी शब्दावली मूलतः संस्कृत से ली जाएगी और गौणतः सभी भारतीय भाषाओं सहित विदेश की भाषाओं को भी प्रचलित शब्दों को अंगीकार किया जा सकता है।

उपरोक्त के आलोक में केन्द्र सरकार के अंतर्गत कार्यालयों/उपक्रमों/बैंकों आदि में राजभाषा के प्रयोग हेतु संसद से सन् 1963 में राजभाषा अधिनियम पारित हुआ। तत्पश्चात 1976 में राजभाषा नियम बनाए गए। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में भारत गणराज्य की 22 अधिकारिक भाषाओं को शामिल किया गया है। प्रतिवर्ष राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वार्षिक कार्यक्रम जारी किया जाता है। इसका सरकारी कार्यालयों में अनुपालन करना हम सभी का संवैधानिक दायित्व है। इसी के अनुपालन में फुटवियर डिजाइन एण्ड डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट (FDDI) संवैधानिक प्रावधानों के अनुपालन हेतु प्रतिबद्ध है।

“राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम मे लाना देश की एकता और उन्नति के लिए आवश्यक है” – महात्मा गांधी


संवैधानिक प्रावधान

हिन्दी राजभाषा एवं भाषा संबंधी प्रावधान भारतीय संविधान के 5वें, 6वें तथा 17वें इन तीनों भागों में निर्दिष्ट है। भाग 5 के अनुच्छेद 120 में संसद में प्रयुक्त होने वाली भाषा, तथा भाग 6 के अनुच्छेद 210 में राज्य के विधान मण्डल में प्रयुक्त होने वाली भाषा से संबंधित निर्देश है। भाग 17वें के चार अध्यायों में राजभाषा संबंधी उपबंध प्रस्तुत किए गए हैः -

  • १. प्रथम अध्याय, में संघ की राजभाषा के रूप में 343 तथा 344 अनुच्छेद है। 343 अनुच्छेद –संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनो के लिए प्रयोग होने वाले अंको का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
  • २. द्वितीय अध्याय में 345,346,347 अनुच्छेदों में राजभाषा के रूप में प्रांतीय भाषाओं के प्रयोग के संबंध में निर्देश दिए गए है।
  • ३. तृतीय अध्याय के अनुच्छेद 348 तथा 349 में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय आदि की भाषा के संबंध में निर्देश दिए गए है।
  • ४. चौथे अध्याय के अनुच्छेद 350 में व्यथा निवारण के लिए अभ्यावेदन में प्रयुक्त भाषा एवं भाषायी अल्पसंख्यक वर्ग हेतु विशेष निर्देश है जबकि 351 में हिन्दी भाषा की संवर्धन हेतु निर्देश दिए गए है।

उपरोक्त सभी प्रावधानों को दृष्टिगत करते हुए एवं राजभाषा विभाग द्वारा प्रत्येक वर्ष जारी वार्षिक कार्यक्रम के अनुसार कार्य करने एवं निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु ‘फुटवियर डिजाइन एण्ड डेवलपमेंट इंस्टिट्यूट’ प्रतिबद्ध एवं तत्पर है।

राजभाषा नियमानुसार संस्थान में हिन्दी के कार्यो की समीक्षा एवं राजभाषा हिन्दी की प्रगति हेतु ‘एफडीडीआई राजभाषा कार्यान्वयन समिति’ का गठन किया गया है। एफडीडीआई राजभाषा कार्यान्वयन समिति के अध्यक्ष के रूप में संस्थान के प्रबंध निदेशक महोदय जी है तथा समिति सदस्य के रूप में सभी अनुभागो के विभागाध्यक्ष है जिनके द्वारा हिन्दी की प्रगति एवं प्रोत्साहन हेतु प्रत्येक तिमाही में बैठकों के माध्यम से सकारात्मक समीक्षा की जाती है।

इसी क्रम में राजभाषा हिन्दी के विकास हेतु संस्थान में राजभाषा हिन्दी से संबंधित कार्यशालाएं एवं कार्मिकों एवं छात्रों हेतु प्रतियोगिताओं का समय-समय पर आयोजन किया जाता है, जिससे राजभाषा हिन्दी का संवर्धन हो सके।

“हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य को सर्वांगसुंदर बनाना हमारा कर्तव्य है” – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद